प्रमत्तसंयत An Ascetic With Restraint But Negligence
वत्ता-वत्त-पमाएल जो वसइ पमत्त-संजओ होइ।
सयल-गुण-सील-कलिओ, महव्वई चित्तला-यरणो।।९।।SSu
सकल शील गुण समन्वय, महाव्रती हो जान। व्यक्त-अव्यक्त प्रमाद अभी, प्रमत्त संयत स्थान ॥२.३२.९.५५४॥
जिसने महाव्रत धारण कर लिये है, सकल शील–गुण से समन्वित हो गया है लेकिन जिसमें व्यक्त–अव्यक्तरुप में प्रमाद शेष है वह प्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती कहलाता है।
One who has adopted the Great Vows, is equipped with all virtuous qualities and good conduct, often exhibits negligence in a manifest or a non-manifest form and hence whose conduct is bit defective is to be called pramattasamyata i.e., non-vigilant observer of great vows. (554)