स्वाध्याय तप Austerity of Self Study

 

 

वाचनापृच्छनानुप्रेक्षाम्नायधर्मोपदेशा:॥२५॥TS

 

स्वाध्याय तप भेद है, पढ़ना पृच्छना ज्ञान।
अनुप्रेक्षा आम्नाय भी, धर्मोपदेश संज्ञान॥९.२५.३२६॥

 

स्वाध्याय तप के पाँच भेद है। वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, आम्नाय, धर्मोपदेश

 

Self study penance are of 5 types: Reading, Questioning, Reflection, Recitation, Preaching

 

परियट्टणा य वायण, पडिच्छणा-णुवेहणा य धम्मकहा।
थुदि-मंगल-संजुत्तो, पंचविहो होइ सज्झाओ।।३७।।SSu

 

पूछे, परिवर्तन व पढ़े, चिंतन, कथा विचार।
मंगलपूर्वक स्तुति करे, स्वाध्याय प्रकार॥२.२८.३७.४७५॥

 

स्वाध्याय तप पाचँ प्रकार का है। परिवर्तना, वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा और स्तुति मंगलपूर्वक धर्म कथा करना।

 

Study of scriptures (svadhyaya) is of five kinds : (1) reading of scriptural text (2) questioning (3) repitition (4) pondering over and (5) narration of religious discourses opening with auspicious praise (of Jina). (475)

 

सज्झायं जाणंतो, पंचिंदियसंवुडो तिगुत्तो य।
होइ य एकग्गमणो, विणएण समाहिओ साहू।।३९।।

 

जानता स्वाध्याय को,  पंचेन्द्रिय कमान।
त्रिगुप्तिमय एकाग्रमन, साधु विनय पहचान॥२.२८.३९.४७७॥

 

स्वाध्यायी पाँचों इन्द्रियों से संयत, तीन गुप्तियो से युक्त, विनय से समाहित तथा एकाग्रमन होता है।

 

A monk who has studied the scriptures keeps his five sense organs under control, practises the three guptis i.e. the control over one’s speech and body, concentrates his mind and observes humility. (477)