काय गुप्ति Body Control
संरंभसमारंभे, आरंभम्मि तहेव य।
कायं पवत्तमाणं तु, नियत्तेज्ज जयं जई।।३१।।
समारम्भ या हो सरम्भ या आरम्भ हो काम।
काया को मुनि रोकता, रहता खुद निष्काम॥२.२६.३१.४१४॥
जागरुक साधु सरम्भ (हिंसा का विचार), समारम्भ (हिंसा के लिये सामग्री जुटाना) व आरम्भ (हिंसा आरम्भ करना) करने से प्रवृत्त काया को रोके।
A careful (vigilant) saint should withhold his body from inclining towards the determination (sanirambha), preparation (samaranbha) and commencement (Aramibha) of doing things, he should protect it body in such manner. (414)