उत्सर्ग Carefulness in Disposal Excreta
एगंते अचित्ते दूरे, गूढे विसाल-मविरोहे।
उच्चारादिच्चाओ, पदिठावणिया हवे समिदी।।२८।।SSu
दूर, एकान्त, जीव ना, अवरोधक ना भान,
मल या मूत्र विसर्जन को, उत्सर्ग समिति जान॥२.२६.२८.४११॥
साधु को मलमूत्र का विसर्जन ऐसे स्थान पर करना चाहिये जहा एकान्त हो, गीली वनस्पति तथा त्रस जीवों से रहित हो, गाँव आदि से दूर हो, कोई विरोध न करता हो। यह उत्सर्ग समिति है।
A monk should answer his calls of nature at a place which is solitary, free from insects and grass, concealed, spacious, free from objection, this is observance of Utsarga Samiti. (411)