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ब्रह्मचर्यव्रत Celibacy Vow
– ब्रह्मचर्यव्रत की भावनाएँ Contemplation of Celibacy
– ब्रह्मचर्याणुव्रत के अतिचार Violation of Celibacy
मैथुनमब्रह्म॥१६॥TS
ब्रह्मचर्य का अर्थ क्या, तू ले अब यह जान।
योग और प्रमाद से, मैथुन अब्रह्म मान॥७.१६.२५२॥
प्रमाद द्वार मन वचन व काया से मैथुन सेवन करना कुशील (अब्रह्म) है।
Sexual indulgence with carelessness of thoughts, words and actions constitutes absence of chastity.
इत्तरिय-परिग्गहिया-परिगहियागमण णंगकीडं च।
परविवाहक्करणं कामे, तिव्वाभिलासं च।।१४।।SSu
पर–नारी से दूर रहे, कामवासना त्याग।
अरु विवाह में रुचि नहीं, नहीं काम से राग॥२.२३.१४.३१४॥
ब्रह्मचर्य अणुव्रती को परायी स्त्रियों से सदा दूर रहना चाहिये। अनंग क्रीड़ा नही करनी चाहिये। अपनी संतान के अतिरिक्त दूसरों के विवाह कराने मे रुचि नही लेनी चाहिये। काम की तीव्र लालसा का त्याग करना चाहिये।
A sravak-who has taken the partial vow of chastity should remain satisfied with his wife and keep himself completely away (aloof/indifferent/unconcerned) from other unmarried and married women. He should not indulge in unnatural sexual intercourse (Anaiya krida). (Further) he should not take interest in the marriages of persons, other than his own offsprings. He must renounce intense lust for sex. (314)
न तु परदारान् गच्छति न परान् गमयति च पापभीतेर्यत्।
सा परदारनिवृत्ति: स्वदारसन्तोषनामापि॥५९॥RKS
पर स्त्री में गमन नहीं, मन वचन और काय।
भय पाप संतोष सदा, ब्रह्मचर्यव्रत भाय॥३.१३.५९॥
जो पाप के भय से परस्त्रियों के प्रति न तो स्वयं गमन करता है न कराता है वह क्रिया परस्त्री त्यागरुप स्वदारसंतोष नामक ब्रह्मचर्य अणुव्रत हैं।
Vow of chastity is neither visiting others women nor encouraging anyone to visit others women.
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