अप्रमत्तसंयत Complete Self Restraint

 

णट्ठा-सेस-पमाओ, वय-गुण-सीलोलि-मंडिओ णाणी।
अणुवसमओ अखवओ, झाण-णिलीणो हु अप्पमत्तो सो।।१॰।।SSu

 

पंडित व्रतगुणशील  हो, प्रमाद नष्ट हो जाय।
क्षय मोह का शेष रहे, अप्रमत्तसंयत कहलाय॥२.३२.१०.५५५॥

 

जो ज्ञानी होने के साथ व्रत, शील और गुण की माला से सुशोभित है सम्पूर्ण प्रमाद समाप्त हो गया है, आत्मध्यान में लीन रहता है लेकिन मोहनीय कर्म का उपशम क्षय करना शेष है वह अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती कहलाता है।

 

The wise man who is well equipped with all vows, whose negligence has disappeared entirely, who remains absorbed in meditation, but who has started neither subsiding his delusive karmas nor annihilating his delusive karmas is called apramattasamyata, i.e., vigilant observer of great vows. (555)