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समभिरुढनय Conventional View Point
सद्दारूढो अत्थो, अत्थारूढो तहेव पुण सद्दो।
भणइ इह समभिरूढो जह इंद पुरंदरो सक्को ॥22॥SSu
शब्दारूढोऽर्थोऽर्थारूढस्तथैव पुनः –।
भणति इह समभिरूढो, यथा इन्द्रः पुरन्दरः ॥22॥
अर्थ जुड़ा है शब्द से, शब्द अर्थ पहचान ।
इन्द्र पुरन्दर हो शके, समभिरूढनय जान ॥4.39.22.711॥
जिस प्रकार प्रत्येक पदार्थ अपने वाचक अर्थ में आरूढ है वैसे ही प्रत्येक शब्द भी अपने-अपने अर्थ में आरूढ है। अर्थात शब्दभेद के साथ अर्थभेद होता ही है। शब्द भेदानुसार अर्थभेद करने वाला समभिरूढ है। जैसे इन्द्र, पुरन्दर और शके तीनों शब्द देवों के राजा बोधक है पर अलग अलग अर्थ का बोध कराते हैं।
Just as every object signifies some specific thing; in the same way every word stands for a specific object (or meaning). There is difference in meaning with difference…