अपूर्वकरण उपशमक तथा क्षपक Destroyer of Karma

 

 

एयम्मि गुणट्ठाणे, विसरिस-समय-ट्ठिएहि जीवेहिं।
पुव्व-मपत्ता जम्हा, होंति अपुव्वा हु परिणामा।।११।।SSu

 

भिन्न समय स्थित जीव है अपूर्व भाव संज्ञान।
पहले ना धारण किये, अष्टम गुण का स्थान॥२.३२.११.५५६॥

 

आठवें गुणस्थान मे जीव विभिन्न समय में स्थित अपूर्व भावो को धारण करते है जो पहले कभी नही हो पाये थे, वह अपूर्वकरण गुणस्थानवर्ती है।

 

In this (eighth) stage of spiritual development the soul experiences unique but frequently changing mental states (of bliss) 
which have not been experienced ever before; hence the stage is called apurvakarna). (556)