प्रत्यक्ष ज्ञान Direct Knowledge

अवधि Clairvoyance
मन:पर्यय Telepathy
– केवलज्ञान Perfect Knowledge

प्रत्यक्षमन्यत् ॥१.१२॥TS

अवधि, मन:पर्यय, केवल है, तीन शेष है ज्ञान।
है प्रत्यक्ष प्रमाण कहा, स्व आत्मा के जान॥१.१२॥

शेष तीन (अवधि, मन:पर्यय और केवलज्ञान) प्रत्यक्ष प्रमाण है।

The remaining three (clairvoyance, telepathy and omniscience) are direct knowledge.

जीवो अक्खो अत्थव्ववण-भोयण-गुणन्निओ जेणं।
तं पइ वट्ट नाणं, जे पच्चक्खं तयं तिविहं।।१३।।SSu

जीव ‘अक्ष’ भी हम कहे, भोगे तीनों लोक।
मन -अवधि का अंतर बस, प्रत्यक्ष हर लोक॥४.३८.१३.६८६॥

 

जीव को अक्ष कहते है। जो ज्ञानरुप मे समस्त पदार्थों मे व्याप्त है वह अक्ष अर्थात जीव है। उस अक्ष से होने वाला ज्ञान प्रत्यक्ष कहलाता है। इसके तीन भेद है। अवधि, मन:पर्यय व केवल ज्ञान।

The soul (jiva) is called “Akasha” this word has been derived from the root (Dhata) “Ashuvyapn”. “Akasha” (Jiva) is that which is prevailing (vyapta) in all the beings in the form of knowledge the derivation of the work “Akasha” can also be effected for the root “Ash” that means food. He who enjoys the prosperity of all the three worlds is “Aksha” (Jiva). In this way the interpretation of Juva as Aksha is done from both roots, The knowledge obtained through “Akasha” is direct (Pratyaksha) is if three kinds: 
1. Clairvoyance, 2. Telepathic and 3. Perfect. (686)