सामायिक Equanimity
समभावो सामइयं, तणकंचण-सत्तुमित्तविसओ त्ति।
निरभिस्संगं चित्तं, उचितयपवित्तिप्पहाणं च।।९।।SSu
शत्रु–यार तृण–कंचन हो, सामायिक समभाव।
राग–द्वेष में चित्त नहीं, उचित प्रवृत्ति स्वभाव॥२.२७.९.४२५॥
तिनके और सोने मे, शत्रु और मित्र मे समभाव रखना ही सामायिक है। अर्थात् रागद्वेषरहित, ध्यानमग्न, उचित प्रवृत्तिप्रधान चित्त को सामायिक कहते है।
Equanimity (samayika) consists of giving equal treatment to a blade of grass and a piece of gold or to a friend and a foe. (In other words), it is equivalent to a mind, dominated by proper inclinations/trends/tendencies, a mind that is free of the (abhiswanga) of attachments and aversions. (425)
वयणो-च्चारण-किरियं, परिचत्ता वीयराय-भावेण।
जो झायदि अप्पाणं, परम-समाही हवे तस्स।।१॰।।SSu
छोड़ वचन ओ उच्चारण , वीतराग हो भाव।
ध्यान आत्मा में रहे, परम समाधि प्रभाव॥२.२७.१०.४२६॥
जो वचन–उच्चारण की क्रिया का परित्याग करके वीतरागभाव से आत्मा का ध्यान करता है, उसके परमसमाधि या सामायिक होती है।
He who renounces the activity of speaking (In other words who maintains silence) and meditates upon soul in dispassionate/unattached manner, gets united with self (or becomes equanimous).
(426)
विरदो सव्व-सावज्जे, तिगुत्तो पिहिदिंदिओ।
तस्स सामइगं ठाई, इदि केवलिसासणे।।११।।SSu
वीतराग आरम्भ से, त्रिगुप्ति जितेन्द्रिय ज्ञान।
हो हरदम ही सामयिक, केवलिशासन मान॥२.२७.११.४२७॥
जो आरम्भ से विरत है, त्रिगुप्तियुक्त है, इन्द्रियों को जीत लिया है, उसके सामायिक स्थायी होती है, ऐसा केवलि शासन मे कहा गया है।
One who refrains from all sinful acts whatsoever, who practises the three controls (guptis), who has one’s sense-organs under control is alone possessed of a steadfast samayika this is what has been proclaimed in the discipline preached by omniscients. (427)
जो समो सव्वभूदेसु, थावरेसु तसेसु वा।
तस्य सामइगं ठाई, इदि केवलिसासणे।।१२।।SSu
स्थावर या जीव त्रस हो, रखता है समभाव।
हरदम ही हो सामयिक केवलिशासन प्रभाव॥२.२७.१२.४२८॥
जो स्थावर व त्रस जीवों के प्रति समभाव रखता है उसके सामायिक स्थायी होती है, ऐसा केवलि शासन मे कहा गया है।
One who treats as equal all the living beings whether mobile or immobile is alone possessed of a steadfast samayika this is what has been proclaimed in the discipline preached by omniscients. (428)