अभ्यंतर परिग्रह Internal Possessions

 

 

मिच्छत-वेदरागा, तहेव हासादिया य छद्दोसा।
चत्तारि तह कसाया, चउदस अब्भंतरा गंथा।।४।।SSu

 

वेद, राग, मिथ हास्य ये अनेक प्रकार के दोष।
चार कषाय के साथ है, चौदह अन्तर कोष॥१.११..१४३॥

 

परिग्रह दो प्रकार का है। आभ्यन्तर और बाह्य। आभ्यन्तर परिग्रह चौदह प्रकार के है। मिथ्यात्व, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसक वेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, क्रोध, मान, माया, लोभ।

 

Attachment of possessiveness is of two kinds; internal and external. The internal possessiveness is of fourteen kinds (1) wrong belief, (2) Sexual desire for women, (3) Sexual desire for man, (4) Sexual desire for both, (5) Laughter, (6) Liking, (7) Disliking, (8) Grief, ( 9) Fear, (10) Disgust, (11) Anger, (12) Pride, (13) Deceit and (14) Greed.