स्थापना निक्षेप – Knowing by representation
सायार इयर ठवणा, कित्तिम इयरा हु ‘बिंबजा पढमा।
इयरा खाइय भणिया, ठवणा अरिहो य णायव्वो॥4॥SSU
साकारोत्तरा स्थापना, कृत्रिमेतरा हि विम्बजा प्रथमा।
इतरा इतरा भणिता, स्थापनाऽर्हश्चं ज्ञातव्य ॥4॥
स्थापना साकार करे, कृत्रिम बिम्ब बनाय ।
इधर उधर अर्हन्त दिखे, निराकार कहलाय ॥4.42.4.740॥
जहाँ एक वस्तु का किसी अन्य वस्तु में आरोप किया जाता है वहाँ स्थापना निक्षेप होता है। यह दो प्रकार का है- साकार और निराकार। कृत्रिम और अकृत्रिम अर्हन्त की प्रतिभा साकार स्थापना है तथा किसी अन्य पदार्थ में अर्हन्त की स्थापना करना निराकार स्थापना है।
(“Sthapananikshepa” is representation or Installation of one thing by another; this is of two kinds: Sakar (Formal) and Nirakar (Formless/Informal). The natural and artificial image of arhat is (an example of) Sakarasthapana (Formal/Figurative); and the representation of Arhat in some other objects is (an example of) Nirkarsthapana(Informal/Unfigurative). (740)