मोक्ष Liberation

 

– मुक्त जीवों के भेद Types of liberated souls

– आत्मा की ४७ शक्तियाँ Powers of soul

 

मोहक्षयाज्ज्ञाननदर्शनावरणान्तरायक्षयाच्च केवलम्॥१॥TS

 

मोह का हो क्षय प्रथम, फिर क्षय तीन साथ।
ज्ञानदर्शन आवरण, अन्तराय ना हाथ॥१०.१.३४९॥

 

मोहनीय कर्म के क्षय से व ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्म के एक साथ क्षय होने से केवल ज्ञान प्रकट होता है।

 

Perfect knowledge is attained by destruction of deluding karma first and destruction of knowledge covering karma, faith covering karma and obstructive karma simultaneously.

 

बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्ष:॥२॥TS

 

मोक्ष क्या है जानिये, कारण बंध अभाव।
निर्जरा भी पूर्ण हो, हो सर्व कर्म अभाव॥१०.२.३५०॥

 

बंध के कारणों का अभाव तथा निर्जरा से समस्त कर्मो का पूर्णत: अभाव हो जाना ही मोक्ष है।

 

Moksha is attained by absence of reasons of bondage and shedding of karmas completely.

 

णवि दुक्खं णवि सुक्खं, णवि पीडा णेव विज्जदे बाहा।
णवि मरणं णवि जण्णं, तत्थेव य होइ णिव्वाणं।।३॰।।SSu

 

जहाँ नहीं सुख दुख रहे, पीड़ा बाधा भान।
मरण जनम का चक्र नही, रहता केवल ज्ञान॥३.३४.३०.६१७॥

 

जहाँ दुख है सुख, पीड़ा है बाधा, मरण है जन्म, वही निर्वाण है।

 

Where there is neither pain nor pleasure, neither suffering nor obstacle, neither birth nor death, there is emancipation.

 

णवि इंदिय उवसग्गा, णवि मोहो विम्हियो ण णिद्दा य।
ण य तिण्हा णेव छुहा, तत्थेव य होइ णिव्वाणं।।३१।।SSu

 

इन्द्रियाँ उपसर्ग नहीं, नींद न विस्मय मोह।
भूख प्यास रहती नही, निर्वाणी आरोह॥३.३४.३१.६१८॥

 

जहाँ इन्द्रियाँ है उपसर्ग, मोह है विस्मय, निन्द्रा है तृष्णाऔर भूख, वही निर्वाण है।

 

Where there are neither sense organs, nor surprise, nor sleep, nor thirst, nor hunger, there is emancipation. (618) 



 

णवि कम्मं णोकम्मं, णवि चिंता णेव अट्टरुद्दाणि।
णवि धम्म-सुक्क-झाणे, तत्थेव य होइ णिव्वाणं।।३२।।SSu

 

कर्म न कर चिन्ता नहीं, ग़ुस्सा पीड़ा भान।
धर्म शुक्ल का ध्यान ना मोक्ष व केवल ज्ञान॥३.३४.३२.६१९॥

 

जहाँ कर्म है नोकर्म, चिन्ता है आर्तरौद्र ध्यान, धर्म ध्यान है और शुक्ल ध्यान, वही निर्वाण है।

 

Where there is neither Karma, nor quasi-Karma nor the worry, nor any type of thinking which is technically called Artta, Raudra, Dharma and Sukla, there is Nirvana. (619) 



 

विज्जदि केवलणाणं, केवलसोक्खं च केवलं विरियं।
केवलदिट्ठि अमुत्तं, अत्थित्तं सप्पदेसत्तं।।३३।।

 

केवल दर्शन  ज्ञान रहे, सुख औ वीर्य प्रताप।
अपरूप अस्तित्व रहे,  प्रदेशत्व गुण आप॥३.३४.३३.६२०॥

 

वहाँ केवलज्ञान , केवल दर्शन, केवलसुख, केवलवीर्य, केवलदृष्टि, अरुपता, अस्तित्व और सप्रदेशत्व ये गुण होते है।

 

IN the emancipated souls, there are attributes like absolute knowledge, absolute bliss, absolute potentiality, absolute vision, formlessness, existence and extension. (620)