मन गुप्ति Mind Control
संरंभसमारंभे, आरंभे य तहेव य।
मणं पवत्तमाणं तु, नियत्तेज्ज जयं जई।।२९।।SSu
समारम्भ या हो सरम्भ या आरम्भ हो काम।
रोके मुनि मन को सदा , रहता खुद निष्काम॥२.२६.२९.४१२॥
जागरुक साधु सरम्भ (हिंसा का विचार), समारम्भ (हिंसा के लिये सामग्री जुटाना) व आरम्भ (हिंसा आरम्भ करना) करने से प्रवृत्त मन को रोके।
An attentive monk should prevent his mind from indulging in evil thoughts (samrambha), collection of implements which cause harm to others (samarambha) and evil actions (arambha). (412)