नय Particular Point of View
– द्रव्यार्थिक Substantive point of view
– पर्यायर्थिक Modal stand point
णिच्छय-ववहार-णया, मूलिम-भेया णयाण सव्वाणं।
णिच्छय-साहण-हेउं, पज्जय-दव्वत्थियं मुणह।।३।।SSu
निश्चय और व्यवहार ही, मूल नय सब ज्ञान।
द्रव्य और पर्याय अर्थ, निश्चय नय के मान॥१.४.३.३४॥
निश्चय नय और व्यवहार नय समस्त नयों के मूल है। द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक नय निश्चय नय के साधन में हेतु है।
The real point of view (Niscaya-naya) and the practical point of view (vyavahara-naya) are the two fundamental types of view-points (nayas). The substantial point of view (dravyarthika naya) and the modal point of view (paryayarthika-naya) are the two means for comprehending the real nature of a thing. (34)
जं णाणीय वियप्पं, सुवासयं वत्थु-अंस-संगहणठ।
तं इह णयं पउत्तं, णाणी पुण तेण णाणेण।।१।।SSu
श्रुतज्ञान अनुसार कई, विकल्प वस्तु ज्ञान।
‘नय’ है नाम विकल्प का, ज्ञानी इसको जान॥४.३९.१.६९०॥
श्रुतज्ञान के आश्रय से युक्त वस्तु के अंश को ग्रहण करने वाले ज्ञानी के विकल्प को ‘नय’ कहते है। उस ज्ञान से जो युक्त है वही ज्ञानी है।
“Naya” is the standpoint (vikalpa/alternation/option) of a wise man to understand or conceive a part of the soul (or object/vastu) which is protected / corborated by scriptural knowledge. He who has got (or commands) such knowledge, is wise (Naya is a stand point which gives partial knowledge of a thing in same particular aspect of it).
उप्पज्जंति वियंति य, भावा णियमेण पज्जवणयस्स।
दव्वट्ठियस्स सव्वं, सया अणुप्पण्णमविणट्ठं।।६।।SSu
जन्म-मरण का चक्र रहे, पर्यायर्थिक जब भाव।
आत्म ये गुण नित्य रहे, द्रव्यार्थिक प्रभाव॥४.३९.६.६९५॥
पर्यायार्थिक नय की दृष्टि से पदार्थ नियमत: उत्पन्न होते है और नष्ट होते है। और द्रव्यार्थिक नय की दृष्टि से सकल पदार्थ सदैव अनुत्पन्न और अविनाशी होते है।
From modal stand point (Paryayarthic naya) souls are as a rule born/reborn and decayed (or destroyed); from substantial stand point (Dravyarthic naya) souls are unborn (Anutpanna) and indestructible (Avinashi). (695)