अशुचि भावना Reflection of Impurity

 

मंसट्ठियसंघाए, मुत्तपुरीसभरिए नवच्छिद्दे।
असुइं परिस्सवंते, सुहं सरीरग्मि किं अत्थि ?।।१७।।SSu

 

माँस हड्डी से निर्मित, मैल भरे नौ छेद।
तन है नाली गंदगी, सुख का कैसा वेद॥२.३०.१७.५२१॥

 

माँस और हड्डी के मेल से निर्मित, मलमूत्र से भरे, नौ छिद्रों के द्वारा अशुचि पदार्थों को बहाने वाले शरीर मे क्या सुख हो सकता है।

 

What joy can there be in a body that is constructed/ made by assembling bones and flesh; which is full of excreta; and which out pours the filthy material (ashuchi-padartha) from (as many as) nine out lets. (521)