आस्रव भावना Reflection of Inflow of Karmas
एदे मोहय-भावा, जो परिवज्जेइ उवसमे लीणो।
हेयं ति मण्णमाणो आसव-अणुवेहणं तस्स।।१८।।SSu
भाव उदय हो मोह के, साधु करता त्याग।
आस्रव इसको मानना, अनुप्रेक्षा का भाग॥२.३०.१८.५२२॥
मोह के उदय से उत्पन्न होने वाले इन सब भावो को त्यागने योग्य जानकर उपशम भाव मे लीन मुनि इनका त्याग कर देता है। यह उसकी आस्रव अनुप्रेक्षा है।
A monk who controls his senses through restraints of his mind, speech and body, and is aware of the observance of samiti, i.e., the five types of vigilance, prevents influx of karmas and will not attract the dust of new karmas. (522)