एकत्व भावना Reflection of Loneliness

 

 

पत्तेयं पत्तेयं नियगं, कम्मफलमणुहवंताणं।
को कस्स जए सयणो ? को कस्स व परजणो भणिओ? ।।११।।SSu

 

हर कोई स्व जीव है, भोगे कर्म न साथ।
स्वजन  यहाँ पे कौन है, नहीं लगेगा  हाथ॥२.३०.११.५१५॥

 

यहाँ प्रत्येक जीव अपने अपने कर्म फल को अकेला ही भोगता है। ऐसी स्थिति मे यहाँ कौन किसका स्वजन है और कौन किसका पर जन?

 

In this world where every one has to suffer the fruits of his own Karmas individually, is there any person whom one can call his own either related or stranger? (515)