अन्यत्व भावना Reflection of Separateness
एगो मे सासदो अप्पा, णाण-दंसण-लक्खणो।
सेसा मे बाहिरा-भावा, सव्वे संजोग-लक्खणा।।१२।।SSu
शाश्वत केवल आत्मा, ज्ञान दर्शन योग।
देह राग है अन्य सभी, मात्र रहे संयोग॥२.३०.१२.५१६॥
ज्ञान और दर्शन से युक्त मेरी एक आत्मा ही शाश्वत है शेष सब अर्थात देह तथा रागादि भाव तो संयोगलक्षण वाले है। उनके साथ मेरा संयोग संबंध मात्र है। वे मुझसे अन्य ही है।
My soul endowed with knowledge and faith is alone permanently mine; all others are alien to me and are in the nature of external adjuncts. (516)