निर्जरा भावना Reflection of Shedding off of Karmas
णाऊण लोगसारं, णिस्सारं दीहगमणसंसारं।
लोयग्गसिहरवासं झाहि पयत्तेण सुहवासं।।२॰।।SSu
सार नही इस लोक में, दीर्घ गमन संसार।
ध्यान करे सर्वोच्च का, सिद्ध चले जिस पार॥२.३०.२०.५२४॥
लोक को नि:सार तथा संसार को दीर्घ गमनरुप जानकर मुनि प्रयत्नपूर्वक लोक के सर्वोच्च अग्रभाग मे स्थित मुक्तिपद का ध्यान करता है, जहाँ मुक्त (सिद्ध) जीव सुखपूर्वक सदा निवास करते है।
It is preached by Jina that the dissociation of Karmic matter (from the self) is called Nirjara. Know that means of Samvara (stoppage) are also the means of Nirjara. (524)