संवर भावना Reflection of Stoppage of Karmas
मण-वयण-काय-गुत्तिंदियस्स समिदीसु अप्पमत्तस्स।
आसव-दार-णिरोहे, णव-कम्म-रया-सवो ण हवे।।१९।।SSu
काय मन वचन गुप्ति का, शुद्ध समिति पहचान।
बंद आस्रव द्वार रहे, संवर अनुप्रेक्षा ज्ञान॥२.३०.१९.५२३॥
तीन गुप्तियों के द्वारा इन्द्रियों को वश मे करनेवाला तथा पाँच समितियों के पालन मे अप्रमत्त मुनि के आस्रव द्वारों का निरोध हो जाने पर नवीन कर्म रज का आस्रव नही होती है। वह संवर अनुप्रेक्षा है।
The closure of the inlets of karmic inflow of the soul by a saint – who observes all the five carefulnesses and controls his senses by means of three preservations (disciplines) results in the stoppage of the arrival of new filth of karmas, this constitutes his reflection of stoppage (samivara-anupreksha) of karmas.
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