प्रत्याखान Self Meditation
मोत्तूण-सयल-जप्प-मणागय-सुह-मसुह-वारणं किच्चा।
अप्पाणं जो झायदि, पंचक्खाणं हवे तस्स।।२॰।।SSu
वचन विकल्प का त्याग कर, शुभो–अशुभ अंजान।
आत्मा को ध्याता रहे, अवश्य प्रत्याख्यान॥२.२७.२०.४३६॥
समस्त वाचनिक विकल्पों का त्याग करके तथा अज्ञात शुभ अशुभ का निवारण करके जो साधु आत्मा को ध्याता है, उसके प्रत्याख्यान नामक आवश्यक होता है।
He who having given up all sorts of talking about and having detached himself from all future thought activities, good and evil; meditates upon his soul, practises renunciation of future evil acts, pratyakhyana in a true sense. (436)