उत्तम क्षमा Supreme Forbearance
कोहेण जो ण तप्पदि, सुर-ण्र-तिरिएहि कोरमाणे वि।
उवसग्गे वि रउद्दे तस्स खमा णिम्मला होदि।।४।।SSu
सुर–नर–पशु न लगा सके, क्रोध भाव की आग।
घोर भयंकर कर्म हो, सरल क्षमा का राग॥१–९–४–८५॥
देव, मनुष्य व पशुओं द्वारा घोर कष्ट पहुँचाने पर भी जो क्रोधित नही होता है वही क्षमा धर्म है।
he who does not become excited with anger even when terrible afflictions are caused to him by gods, human beings and beasts, his forbearance is perfect. (85)
८६ खम्मामि सव्वजीवाण, सव्वे जीवा खमंतु मे।
मित्ती मे सव्वभूदेसु, बेरं मज्झं ण केण वि।।५।।SSu
सब जीवों को माफ़ करु, जीव करो मम माफ़।
मित्र भाव सब जीव से, वैर नहीं दिल साफ़॥१–९–५–८६॥
मै सब जीवों को क्षमा करता हूँ। सब जीव मुझे क्षमा करे। मेरा सब जीवों के प्रति मैत्री भाव है। मेरा किसी से वैर नही है।
I forgive all living beings and may all living beings forgive me; I cherish feelings of friendship towards all and I harbour enmity towards none. (86)
जइ किंचि पमाएणं, न सुट्ठु भे वट्ठियं मए पुव्विं।
तं मे खामेमि अहं, निस्सल्लो निक्कसाओ अ।।६।।SSu
किंचित मात्र प्रमादवश, उचित नहीं व्यवहार।
क्षमा याचना करता हूँ, बिन कषाय दे प्यार॥१–९–६–८७॥
अल्पतम प्रमादवश भी यदि मैने आपके प्रति उचित व्यवहार नही किया हो तो मै पापरहित होकर आपसे क्षमा याचना करता हूँ।
I sincerely beg your pardon with a pure heart, in case I have behaved towards you in an improper manner due to even slight inadvertence. (87)