उत्तम मार्दव Supreme Modesty
कुल-रूव-जादि-बुद्धिसु, तव-सुद सीलेसु गारवं किंचि।
जे णवि कुव्वदि समणो, मद्दव-धम्मं हवे तस्स।।७।।SSu
कुल, रुप, जात, ज्ञान, तप, श्रुत, शील गर्व न भाव।
श्रमण जो ऐसा करे नहीं, मदहीन धर्म स्वभाव॥१–९–७–८८॥
जो साधु कुल, रुप, जाति, ज्ञान, तप, श्रुत और शील का तनिक भी गर्व नही करता, उसको मार्दवधर्म होता है।
A monk who does not boast even slightly of his family, handsomeness, caste, learning, penance, scriptural knowledge and character observes the religion of humility. (88)
८९ जो अवमाणण-करण दोसं परिहरइ णिच्च माउत्तो।
सो णाम होदि माणी ण दु गुणचत्तेण माणेण।।८।।SSu
करें न जन अपमान कभी , दोष सदा परिहार।
गुण नही अभिमान करे, मानी नही विचार॥१–९–८–८९॥
जो दूसरे को अपमानित करने के दोष को सदा सावधानिपूर्वक टालता है, वही यथार्थ में मानी है। गुणशून्य अभिमान करने से कोई मानी नही हो जाता।
The really honoured (Mani/honourable) are those, who carefully avoid (committing) the error (Dosa) of insulting others. A person who merely boasts, has no virtues, cannot command respect. (89)
से असइं उच्चागाए अवइं णायागाए गी होणे णो अइरित्तं ।
णो पीहए इति संखाए, के गोयावादी ? के माणावादी ? ।।९।।SSu
ऊँच–नीच को भोग चुका, नही हीन बेकार।
ऐसा जाने कौन करे, जातपात से प्यार॥१–९–९–९०॥
यह जीव अनेक बार उच्च और नीच गोत्र भोग चुका है, यह जानकर कौन गोत्रवादी होगा।
Every one has born several times in high families as well as in low families; hence none is either high or low. After knowing this, who will feel proud of taking birth in respectable or high family? (90)