उत्तम शौच Supreme Non-Greediness
सम-संतोस-जलेणं, जो धोवदि तिव्व लोह मल पुंजं।
भोयण-गिद्धि-विहीणो, तस्स सउच्चं हवे विमलं।।१९।।
लोभ का मल साफ़ करे, जल समता संतोष।
भोजन का लालच नहीं, शौच धरम आघोष॥१–९–१९–१००॥
जो समता व संतोषरुपी जल से लोभरुपी मल को धोता है और जिसमें भोजन की लिप्सा नही है उसके विमल शौचधर्म होता है।
One who washes away the dirty heap of greed with the water of equanimity and contentment and is free from lust for food, will attain perfect purity. (100)