उत्तम आर्जव Supreme Straightforwardness
जो चिंतेइ ण वंक ण कुणदि वंकं ण जपंदं वकं।
ण य गोवदि णिय-दोसं अज्जव धम्मो हवे तस्स।।१॰।।SSu
मन, वचन व कर्म से, कुटिल नहीं व्यवहार।
ढके नहीं निज दोष को, आर्जव धर्म विचार॥१–९–१०–९१॥
जो कुटिल विचार नही करता, कुटिल कार्य नही करता, कुटिल वचन नही बोलता और अपने दोषों को नही छुपाता, उसके आर्जव धर्म होता है।
He who does not think wickedly, does not act wickedly, does not speak wickedly and does not hide his own weaknesses, observes the dharma of straightforwardness. (91)