अवधिज्ञान के भेद Types of clairvoyance knowledge
– भव प्रत्यय Owing to birth
– गुण प्रत्यय as per merit
अवहीयदि त्ति ओही सीमाणाणे त्ति वण्णिदं समए।
भव-गुण-पच्चय-विहियं, तमोहिणाणं त्ति णं बंति।।८।।SSu
अवधिज्ञान सीमित रहे, भाव क्षेत्र द्रव्य काल।
भव गुणों का भेद कहे, सीमा है हर हाल॥४.३८.८.६८१
द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की मर्यादापूर्वक पुरी पदार्थों को एकदेश जाननेवाला ज्ञान अवधि ज्ञान कहते है। इसे आगम मे सीमाज्ञान भी कहा गया है। इसके दो भेद है। भवप्रत्यय और गुण प्रत्यय।
“Avadhiyati” its avadhih (i.e. the knowledge, which partly know the objects having limitations of subjects matter (Dravya), area/space (kshetra), time (kala) and quality of the objects known (Bhava) is called clairvoyance knowledge (Avadhi-Jnan). Agama describes it as the knowledge limitation. It is of two kinds: 1. The clairvoyance knowledge since birth (Bhava-pratyaya) and 2. The clairvoyance knowledge derived from merit (Guna pratyaya). (681)