अनर्थदण्डविरति के अतिचार Violation of Purposeless Sin Vow
कन्दर्पकौत्कुच्यमौखर्यासमीक्ष्याधिकरणोपभोगपरिभोगानर्थक्यानि॥३२॥TS
अशिष्ट वचन, असभ्य चेष्टा, अप्रयोजन विचार।
अप्रयोजन योग प्रवृत्ति, अनर्थ संग्रह अतिचार॥७.३२.२६८॥
अनर्थदण्डविरतिव्रत के अतिचार:
१। कन्दर्प – रागसहित अशिष्ट वचन कहना
२। कौत्कुच्य- शरीर की असभ्य चेष्टा करना
३। मौखर्य – बकवास करना
४। असमीक्ष्याधिकरण – बिना प्रयोजन मन वचन काय की प्रवृति करना।
५। उपभोगपरिभोगानर्थक्य -उपभोग परिभोग की वस्तुओं का अनर्थ संग्रह करना।
5 violation of purposeless acts:
- Purposeless talks
- Purposeless actions
- Senseless talks
- Purposeless indulging by mind, words and actions.
- Accumulation of purposeless things
कंदप्पं कुक्कुइयं मोहरियं संजुयाहि गरणं च।
उवभोग-परीभोगा-इरेयगयं चित्थ वज्जइ।।२३।।SSu
शरारत या उपहास न, अधिकरण न बकवास
भोग सीमा बनी रहे, अनर्थदण्डविरत विश्वास ॥२.२३.२३.३२३॥
अनर्थदण्डविरत श्रावक को अशिष्ट वचन, शारीरिक कुचेष्टा, व्यर्थ बकवास, हिंसा के अधिकरणो का संयोजन तथा उपभोग की मर्यादा का अतिरेक नही करना चाहिये।
A Sravak, who has taken the partial vow of Anartha-dand-virati, should not violated the limits of enjoyment and re-enjoyment of consumable and non-consumable things. He should not collect and make the instruments of violence available. Such a sravak should also neither cut joke another (kandarp); nor gesticulate and do mischievous; nor gossip (monkharya) or be garrulous. (323)