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संलेखना के अतिचार Violations of Passionless Death
मारणान्तिकीं सल्लेखनां जोषिता ॥२२॥TS
समाधि मरण चाह रहे, अंत समय जब आय।
जोश भरी सल्लेखना, मोक्ष मार्ग को पाय॥७.२२.२५८॥
मरणकाल आने पर समाधिमरण व्रत का प्रीतिपूर्वक सेवन करना चाहिए।
The householder seeks with pleasure voluntary death (sallekhana) at the end of his life.
जीवितमरणाशंसामित्रानुरागसुखानुबन्धनिदानानि॥३७॥TS
जीवन मरण चाह रहे, स्वजनों से प्यार।
सुख स्मरण व निदान भी, सल्लेखन अतिचार॥७.३७.२७३॥
सल्लेखना व्रत के पाँच अतिचार:
१। जीने की इच्छा रखना
२। शीघ्र मरने की इच्छा करना
३। मित्रों में अनुराग करना
४। भोगे हुए सुखों का स्मरण करना
५। निदान- आगामी सुखों की वांछा करना
5 violations of voluntary death vow:
- Desire to live
- Desire to die
- Affection for friends and family
- Remembering pleasures
- Longing for pleasures
जीवितमरणाशंसे भयमित्रस्मृति निदान नामान:।
सल्लेखनातिचारा: पंच जिनेन्द्रै: समादिष्टा॥१२९॥RKS
जीने मरने की इच्छा, भय या ममता तार।
भावी भोगों की इच्छा, सल्लेखन अतिचार॥६.८.१२९॥
जिनेन्द्र देव ने सल्लेखना के पाँच अतिचार कहे: जीने की इच्छा, मरने की इच्छा, भय, मित्रो का स्मरण व निदान अर्थात् आगामी भोगों की इच्छा।
As per Jinendradev there are five violations of Sallekhana: desire to live, wishing for death, fear, remembering dearones and desires for future attainments.
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