अपरिग्रह व्रत Vow of Non-Possessions
अपरिग्रहव्रत की भावनाएँ Contemplation of Non-possession vow
परिग्रह के भेद Types of possessions
परिग्रह परिमाणाणुव्रत के अतिचार Violation of limiting possession vow
मूर्च्छा परिग्रह:॥१७॥TS
परिग्रह का अर्थ क्या, तू ले अब यह जान।
ममत्व का भाव जहाँ, परिग्रह की पहचान॥७.१७.२५३॥
प्रमाद द्वार मन वचन व काया से ममत्व परिणाम होना परिग्रह है।
Attachment to anything with carelessness of thoughts, words and actions is called possessiveness (parigrahi).
विर यापरिग्गहाओ, अपरिमिआओअ गंततण्हाओ।
बहुदोससंकुलाओ, नरयगइगमणपंथाओ।।१५।।SSu
खित्ताइ-हिरन्न्इ-धणाइ-दुपयाइ-कुवियगस्स तहा।
सम्मं विसुद्ध-चित्तो न पमाणाइक्कमं कुज्जा।।१६।।SSu
परिग्रह की सीमा करे, तृष्णा का यह बीज।
कारण भारी दोष का, देत नरक गति चीज़॥२.२३.१५.३१५॥
धातु खेत, घर, धन रहे ,पशु वाहन भण्डार।
सम्यक श्रावक मन निर्मल , हद बाँधे व्यवहार॥२.२३.१६.३१६॥
असीमित परिग्रह अनन्त तृष्णा का कारण है। नरकगति का मार्ग है। अत: परिग्रह–परिमाणाणुव्रती श्रावक को क्षेत्र, मकान, सोना–चाँदी, धन–धान्य, द्विपद–चतुष्पद आदि का एक सीमा से ज़्यादा परिग्रह नही करना चाहिये।
Persons should refrain from accumulation of unlimited property due to unquenchable thirst (i.e. greed) as it becomes a pathway to hell and results in numerous faults. A righteous and pure-minded person should not exceed the self-imposed limit in the acquisition of lands, gold, wealth, servants, cattle, vessels and pieces of furniture. (315 & 316)