अहिंसाव्रत Vow of non-violence
– भेद Types
– भावनाएँ Contemplation
– अतिचार violation
– हिंसा के भेद Types of violence
प्रमत्तयोगात्प्राणव्यपरोपणं हिंसा॥१३॥TS
होती क्या जीव हिंसा, तू ले अब यह जान।
मन वचन और काय से, प्रमादवश हर प्राण॥७.१३.२४९॥
प्रमाद द्वार मन वचन व काया से किसी के प्राणों को हर लेना हिंसा है।
Taking life of someone with carelessness of thoughts, words and actions is called violence (hinsa).
हिंसादो अविरमणं वहपरिणामो य होइ हिंसा हु।
तम्हा पमत्तजोगो, पाणव्वरोवओ णिच्चं।।९।।SSu
विरक्त नहीं जो हिंसा से, या रखता परिणाम।
या मद में उलझा रहे, हिंसा का ही काम॥१.१२.९.१५५॥
हिंसा से विरक्त न होना या हिंसा का परिणाम रखना भी हिंसा है इसलिये जहा प्रमाद है वही नित्य हिंसा है।
Nourishing the thoughts and attitudes of violence in mind and not renouncing violence amounts to committing violence. He who is passionless (Apramatta/careless) is non violent; and on the contrary he who is passionate (pramatta) is violent. (155)
सव्वेसि-मासमाणं हिदयं गब्भो व सव्वसत्थाणं।
सव्वेसिं वदगुणाणं, पिंडो सारो अहिंसा हु।।५।।SSu
सब आश्रम की जान हैं, शास्त्रों रहस्य सार।
व्रतों गुणों का पिण्ड है, अहिंसा मुख्य विचार॥२.२५.५.३६८॥
अहिंसा सब आश्रमों का हृदय, सब शास्त्रों का रहस्य, सब व्रतों और गुणों का पिण्डभूत सार है।
Non violence is the heart of all ashramas mystery of all the scriptures and the quintessence of all vows and attributes. (368)