उपशांतकषाय Whose Passions Subsided
कदक-फल-जुद जलं वा, सरए सरवाणियं व णिम्मलय।
सयलो-वसंत-मोहो, उवसंत-कसायओ होदि।।१५।।SSu
ज्यों निर्मल फल युक्त जल , शरद सरोवर जान।
मोह समस्त निशांत हुआ उपशान्त कषाय स्थान॥२.३२.१५.५६०॥
जैसे मिट्टी के बैठ जाने से जल निर्मल होजाता है लेकिन जल थोड़ा भी हिल जाने से मिट्टी ऊपर आजाती है वैसे ही मोह के उदय से उपशान्तकषाय श्रमण (ग्यारहवाँ ) स्थानच्युत होकर सूक्ष्मसराग (दसवाँ ) स्थान मे पहुँच जाता है।
Just as the water mixed with kataka-fruit or a pond’s water in the autumn season have their dirtiness subsided, similarly a person whose all delusive karmas have subsided is called upasanta Kasaya. i.e., whose passions are subsided. (560)