[vc_row][vc_column][vc_column_text]

अनुयोग Scriptures

 

प्रथमानुयोगमर्थाख्यानम् चरितं पुराणमपि पुण्यम्।
बोधिसमाधिनिधानम्, बोधति बोध: समीचीन:॥४३॥

 

प्रथमानुयोग जानता, धर्म पुराण का ज्ञान।
परम अर्थ का ज्ञान हो, ऐसा सम्यग्ज्ञान॥२.२.४३॥

 

सम्यग्ज्ञज्ञान परम अर्थ को बताने वाला पुण्य देने वाला, एक पुरुष के आश्रित कथा और त्रैशठ शलाका पुरुषों की पुराण और धर्म व शुक्ल ध्यान रुपी प्रथमानुयोग को जानता हैं ।

 

As written in prathamanuyog, right knowledge reveals the ultimate meaning of virtues by telling stories of heroes and sixty three shalak purush.

 

लोकालोकविभक्ते युर्गपरिवृत्तेश्चतुर्गतीनां च।
आदर्शमिव तथा मतिरवैति करणानुयोगं च॥४४॥

 

युग परिवर्तन व चार गति, ज्ञान लोक अलोक।
जान करणानुयोग को, मतिज्ञान में श्लोक॥२.३.४४॥

 

तथा मतिज्ञान लोक और अलोक के विभाग, युगों के परिवर्तन और चारों गतियों का स्वरुप दर्पण की तरह दिखने वाले करणानुयोग को भी जानता है।

 

As written in karananuyog, right knowledge reveals division of space, changing of time and existence of life in four gati.

 

गृहमेध्यनगाराणां, चारित्रोत्पत्तिवृद्धिरक्षांगम्।
चरणानुयोगसमयं, सम्यग्ज्ञानं विजानाति॥४५॥

 

उत्पत्ति, वृद्धि या रक्षा, मुनि-गृहस्थ का ज्ञान।
चरणानुयोग जानता, ऐसा सम्यग्ज्ञान॥२.४.४५॥

 

और यह सम्यग्ज्ञान गृहस्थ और मुनियों के चारित्र की उत्पत्ति, वृद्धि और रक्षा के कारणरुप चरणानुयोग शास्त्र को भी जानता हैं।

 

As written in charnanuyog, right knowledge reveals the conduct of householder and ascetic about creation, development and maintenance of life.

 

जीवाजीवसुतत्त्वे, पुण्यापुण्ये च बंधमोक्षौ च।
द्रव्यानुयोगदीप: श्रुतविद्यालोकमातनुते॥४६॥

 

जीव अजीव व पाप पुण्य, बंध, मोक्ष तत्त्व को जान।
द्रव्यानुयोग भी जानता, ऐसा सम्यग्ज्ञान॥२.५.४६॥

 

ये सम्यग्ज्ञान जीव, अजीव, पुण्य, पाप, बन्ध, मोक्ष आदि तत्त्व को प्रकाशित करने वाले द्रव्यानुयोग को भी जानता है।

 

As written in dravyanuyog, right knowedge reveals substances such as living being, non-living being, virtues and sins, bondage and liberation.

[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]