आस्रव Influx of Karma

 

– भेद Division

– स्वरुप Innate nature

– योग निमित्त से भेद Division as per Yog

– स्वामी अपेक्षा भेद Division as per owner

– अधिकरण Instrumental

– कर्मो की अपेक्षा आस्रव के कारण Reason of influx as per karma

 

 

स आस्रव:॥२॥

 

मन वचन और काय का, जब होता संयोग।
कर्म ग्रहण चलता रहे, आस्रव ही है योग॥६.२.२११॥

 

वह योग ही आस्रव है।

 

The yog is influx of karma.

 

आसवदारेहिं सया, हिंसाईएहिं कम्ममासवइ।
जह नावाइ विणासो, छिद्दहि जलं उयहिमज्झे।।१५।।SSu

 

खुले आस्रव द्वार  हों, कर्मठ सतत प्रवाह।
छेद रहे जब नाव में, मिलती जल को राह॥३.३४.१५.६०२॥

 

हिंसा आदि कर्मों से निरन्तर आस्रव होता रहता हैजैसे कि समुन्दर मे जल के आने से सछिद्र नौका डूब जाती है।

 

There is a continuous inflow of the Karmas through the doors of influx, i. e., violence etc., just as a boat with holes sinks in the sea due to the inflow of water, so does the soul. (602)

मणसा वाया कायेण, का वि जुत्तरस विरिय-परिणामो।
जीवस्स-प्पणिओगो, जोगो त्ति जिणेहिं णिद्दिट्ठो।।१६।।SSu

 

काय मन वचन साथ ही, जीव वीर्य परिणाम।
प्रदेश-परिस्पन्दनस्वरूप , प्रणययोग के काम॥३.३४.१६.६०३॥

 

योग भी आस्रव द्वार है। मन वचन काय से युक्त जीव का जो वीर्य परीणाम होता है उसे योग कहते है। प्रदेशपरिस्पन्दनस्वरुप को भी प्रणियोग कहते है।

 

(Yogas are also the doors of Karmic influx). The vibrations in the soul through the activities of mind, body and the speech are known as Yoga. So say the Jinas. (603)