अनर्थदण्ड व्रत Purposeless Sins Vow
– अतिचार Violation of purposeless sin vow
विरई अणत्थदंडे, तच्चं स चउव्विहो अवज्झाणो।
पमायायरिय हिंसप्पयाण, पावोवएसे य।।२१।।SSu
कष्ट अकारण दे नहीं, अनर्थ दण्ड है चार।
सोच बुरी, प्रमाद चर्या, हिंसा, पाप प्रचार॥२.२३.२१.३२१॥
बिना किसी उद्देश्य से कार्य करना व किसी को सताना अनर्थ दण्ड कहलाता है। इसके चार भेद है। अपध्यान, प्रमादपूर्ण चर्या, हिंसा के उपकरण देना और पाप का उपदेश। इन तारो का त्याग अनर्थदण्डविरति नामक तीसरी गुणव्रत है।
The third gunavrata consists in refraining from a futile violent act which might be one of the four-types, viz. (1) entertaining evil thought, (2) negligent behaviour, (3) lending to someone an instrument of violence and (4) advising someone to commit a sinful act. (321)