भाषा समिति Carefulness in Speech

 

 

न लवेज्ज पुट्ठो सावज्जं, न निरट्ठं न मम्मयं।
अप्पणट्ठा परट्ठा वा, उभयस्सन्तरेण वा।।१६।।SSu

 

पाप वचन या निरर्थक, ना दुख भेदी वाद।
भाषा समिति यही कहे , कर ना वाद विवाद॥२.२६.१६.३९९॥

 

जो स्वयं अन्य के लिये पाप वचन, निर्रथक वचन और कटु वचन का प्रयोग करे वो भाषा समिति परायण साधु है।

 

Even when enquired, a monk ought not to utter a sinful word, a senseless word, a heart-rending word either for the sake of oneself, or for the sake of another one, or for the sake of both. (399)

 

तहेव फरुसा भासा, गुरु भूओ-वघाइणी।
सच्चा वि सा न वत्तव्वा, जओ पावस्स आगमो।।१७।।SSu

 

कटु वचन बोले नहीं, लगे  जीव  अपघात।
सत्य वचन पापी बड़ा, जो करता आघात॥२.२६.१७.४००॥

 

कटु वचन या प्राणियों के चोट पहुँचाने वाली भाषा भी बोले। ऐसा सत्य वचन भी बोले जिससे पाप का बंध होता है।

 

The monk should not use harsh words or speak what is harmful to other living beings; even if it is true, because it is sinful. (400)