द्रव्य निक्षेप – Knowing from Substance

 

 

दव्वं खु होइ दुविहं, आगम-णोआगमेण जह भणियं ।
अरहंत-सत्थ-जाणो, णोजुत्तो दव्व-अरिहंतो  ॥5॥SSU

 

णोआगमं पि तिविहं, णाणिसरीरं भावि कम्मं च ।
णाणिसरीरं तिविहं, चुद चत्तं चाविदं चेति ॥6॥SSU

 

द्रव्यं शखलु भवति द्विविधं, आगममनोआगमाभ्याम् यथा भणितम् ।
अर्हत् शास्त्रज्ञायकः अनुपयुक्तो द्रव्यार्हन् ॥5॥

 

नोआगमः अपि त्रिविधः, देहो ज्ञानिनो भावकिर्म च ।
ज्ञानिशरीरं त्रिविधं, च्युतं त्यक्तं च्यावितम् च इति ॥6॥

 

नोआगम आगम कहे, द्रव्यनिक्षेप दू जात।
शास्त्र ज्ञान अर्हन्त का, कर उपयोग न पात ॥4.42.5.741॥

 

ज्ञायतन, भावी, करम, नोआगम के भाग।
च्युत, त्यक्त, च्यावित रहे ज्ञानी तन त्री राग ॥4.42.6.742॥

 

जब वस्तु की वर्तमान अवस्था का उल्लंघन कर उसका भूतकालीन या भावी स्वरूपानुसार व्यवहार किया जाता है, तब उसे द्रव्यनिक्षेप कहते हैं। उसके दो भेद है- आगम और नोआगम। अर्हन्तकथित शास्त्र का जानकार जिस समय उस शास्त्र में अपना उपयोग नहीं लगाता उस समय वह आगम द्रव्यनिक्षेप अर्हन्त है। नोआगम द्रव्यनिक्षेप के तीन भेद हैं- ज्ञायकशरीर, भावी और कर्म। जहाँ वस्तु के ज्ञाता के शरीर को उस वस्तुरूप माना जाय वहाँ ज्ञायक शरीर नोआगम द्रव्यनिक्षेप है। जैसे राजनीतिज्ञ के मृत शरीर को देखकर कहना कि राजनीति मर गयी। ज्ञायकशरीर भी भूत, वर्तमान और भविष्य की अपेक्षा तीन प्रकार का तथा भूतज्ञायक शरीर च्युत, त्यक्त और च्यावित रूप से पुनः तीन प्रकार का होता है। वस्तु को जो स्वरूप भविष्य में प्राप्त होगा उसे वर्तमान में ही वैसा मानना भावी नोआगम द्रव्यनिक्षेप है।जैसे युवराज को राजा मानना तथा किसी व्यक्ति का कर्म जैसा हो अथवा वस्तु के विषय में लौकिक मान्यता जैसी हो गयी हो उसके अनुसार ग्रहण करना कर्म या तद्व्यतिरिक्त नोआगम द्रव्यनिक्षेप है। जैसे जिस व्यक्ति में दर्शन विशुद्धि, विनय आदि तीर्थकर नामकर्म का बन्ध करानेवाले लक्षण दिखाई दे उसे तीर्थकर ही कहना अथवा पूर्वकलश, दर्पण आदि पदार्थो को लोक-मान्यतानुसार मांगलिक कहना।

 

“Dravyanikshepa” (Taking the potential for the actual) is there, where there is a transaction in accordance with the past or future shape of an object, disregardful of its present state. It is of two kinds: 1. Agam-Dravya-Nikshepa (Attention-Substance- Aspect); and 2. No-Agam-Dravyanikshepa (Quasi attention-Substanceaspect). For example when the knower of the scripture of arhat does not attend that scripture it is called Arhat, according to Agam-Dravya-Nikshepa (attentionsubstanceaspect). No Agam Dravya Nikshepa (Quasi attention substance aspect) is of three kinds:- 1. Jnayaka-sarir (body of the knower); 2. Bhavi (Attributing to the body in the present a conduction of some future existence after death); and 3. Karma (Tadvyatirikta) (attributing to the body the karma matter by which it will acquire only particular condition. The Jnayak sarir No Agam Dravya nikshepa is there; where the body of the knower of that object is considered to be equal to that thing for example, “to say that politics is dead by just seeing the dead body of a politician. The body of the knower (Jnayak) (sarir) is of three kinds: 1. Past 2. Present and 3. Future The past body of the knower (Bhuta-Jnayaksarir) is again of three kinds : 1. Fallen (cyst); 2. Deserted (Tyakta) and 3. Dripped (Chyavita). Bhavi no agam-Dravya nikshepa is that according to which an object is at present considered of the shape it is to acquire in future. For example; to consider a prince designates as the king.The karma (Tadvyatirikta) no Agam Dravya nikshepa is attributing the karmic matter of one’s deeds to his body or under standing a thing in accordance with the general recognition about it for example to call a man equipped with the attributes of Darshan visuddhi, vinaya and other characteristics of a would be tirthankar as tirthankar; or to call the filled up pitcher, looking glass etc. as auspicious, in view of general recognition thereof. (741 & 742)