द्रव्य कर्म Physical Karma भाव कर्म Psychic Karma
कम्मत्तणेण एक्कं, दव्वं भावो त्ति होदि दुविहं तु।
पोग्गल-पिंडो दव्वं, तस्सत्ती भाव-कम्मं तु।।७।। SSu
करम एक पर भाग दो, द्रव्य–भाव विचार।
पुद्गलपिण्ड द्रव्य करम, रहता भाव विकार॥१.६.७.६२॥
सामन्य रुप से कर्म एक है पर द्रव्य व भाव उसके दो भाग है। कर्म पुद्गल का पिण्ड द्रव्य कर्म है पर उसके निमित्त से जीव में होने वाले राग द्वेष विकार भाव कर्म है।
Karma as such is of one type but it is divided also as, dravyakarma (objective) and bhavakarma (subjective). The dravyakarma is a mass of physical particles and the inherent capacity of it is bhavakarma (and this capacity is originated from the attachment and aversion of the self). (62)