मांस त्याग Renunciation of Meat

 

 

लोइय-सत्थम्मि वि, वण्णियं जहा गयण-गामिणो विप्पा। भुवि मंसा-सणेण पडिया, तमहा ण पउंजए मंसं।।५।।SSu

 

कहता लौकिक शास्त्र यही,पंडित गिरे आकाश।
पतित मांस सेवन करे, खाएं ना हम काश॥२.२३..३०५॥

 

लौकिक शास्त्र मे भी यह उल्लेख मिलता है कि माँसाहारी पंडित जो कि आकाश मे विचरण करता था वो गिर कर पतित हो गया। अतएव माँस का सेवन नही करना चाहिये।

 

Scriptures of other religions have described that sages moving in air have fallen to the ground on eating meat; therefore meat-eating should be avoided. (305)

 

मांसा-सणेण वड्ढइ, दप्पो दप्पेण मज्ज-महिलसइ। जूयं पि रमइ तो तं, पि वण्णिए पाउण्ह दोसे।।४।।SSu

 

दर्प मांसाहार से , चाहे दर्प शराब।
जुए की जो लत लगती, मानव बने ख़राब॥२.२३..३०४॥

 

मांसाहार से अहंकार बढ़ता है, अहंकार से मद्यपान की अभिलाषा जागती है और तब वह जुआ भी खेलती है इस प्रकार मनुष्य सब दोषों का घर बन जाता है।

 

Meat-eating increases pride, pride creates a desire for intoxicating drinks and pleasure in gambling; and thus springs up all aforesaid vices. (304)