आकाश Space

– प्रकार Dividion

– लक्षण Characteristics

 

 

आकाशस्यानन्ता: ॥९॥TS

 

जिसका अंत होवे नहीं, अनन्त वो कहलाय।
प्रदेश अनन्त आकाश में, सब द्रव्य समा जाय॥५.९.१७६॥

 

आकाश के अनन्त प्रदेश है।

 

Space (Aakash) have infinite units.

 

आकाशस्यावगाह:॥१८॥TS

 

धर्म अधर्म जीव पुद्गल, अवगाहन आकाश।
रहने को स्थान दे, उपकार का प्रकाश॥५.१८.१८५॥

 

अवगाह (स्थान) देना आकाश द्रव्य का उपकार है।

 

Benevolence of space (Aakash) is to provide accommodation.

 

चेयणरहियममुत्तं, अवगाहणलक्खणं च सव्वगयं।
लोयालोयविभेयं, तं णहदव्वं जिणुद्दिट्ठं॥12॥SSu

 

चेतनारहितममूर्तं, अवगाहनलक्षणं च सर्वगतम्।
लोकालोकद्विभेदं, तद् नभोद्रव्यं जिनोद्दिष्टम्।12॥

 

अमूर्त व्यापक चित्त नहीं, द्रव्य गगन अवगाह ।
भेद लोक अलोक रहे, जिनदृष्टि नभ राह ॥3.35.12.635॥

 

जिनेन्द्र देव ने आकाशद्रव्य को अचेतन, अमूर्त, व्यापक और अवगाह लक्षणवाला कहा है। लोक और अलोक के भेद से आकाश दो प्रकार का है।

 

The substance space is devoid of consciousness, is incorporeal, accommodating and allpervading. It is of two types one is lokakasa i.e., (space within the universe) and Alokakasa i.e., space beyond the universe. (635)

 

जीवा चेव अजीवा य, एस लोए वियाहिए।
अजीव-देस-मागासे, अलोए से वियाहिए।।१३।।

 

जीव अजीव बसे जहाँ,  होता है वो लोक।
नभ है मात्र अजीव जहाँ , कहते उसे अलोक॥३.३५.१३.६३६॥

 

यह लोक जीव और अजीवमय कहा गया है। जहा अजीव का भाग केवल एक आकाश पाया जाता है उसे अलोक कहते है।

 

It is explained that the loka, i.e., universe consists of living and non-living substances, whereas Aloka consista of only a part of one non-living substance i.e., (space) (636)