वैयावृत्य के विषय Subjects of Selfless Service
आचार्योपाध्यायतपस्विशैक्ष्यग्लानगणकुलसंघसाधुमनोज्ञानाम्॥२४॥TS
आचार्य, उपाध्याय भी, तपस्वी, शैक्ष्य, ग्लान।
गण, कुल, संघ व साधु भी, मनोज्ञ सेवा जान॥९.२४.३२५॥
दस प्रकार के परिस्थितियों के अनुसार मुनियों की सेवा करना वैयावृत्त्य तप है।
आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैक्ष्य, ग्लान, गण, कुल, संघ, साधु, मनोज्ञ
Selfless service penance is to serve 10 types of sants:
Head, Preceptor, Ascetic, Disciple, Ailing ascetic, Congregation of aged saints, Congregation of common teacher, Congregation of four orders, Long standing ascetic, Saint of high reputation.
सेज्जा-गास-णिसेज्जा उवधी पडिलेहणा उवग्गहिदे।
आहारो-सह-वायण-विकिंचणुव्वत्तणादीसु।।३५।।SSu
शय्या, वसति, आसन धरे, सेवा साधु प्रतिलेख।
भोजन, औषधि, वाचना, वैयावृत्य तप देख॥२.२८.३५.४७३॥
शय्या, वसति, आसन तथा प्रतिलेखन से उपकृत साधुजनो की आहार, औषधि, वाचना, मल–मूत्र विसर्जन तथा वन्दना आदि से सेवा–शश्रुषा करना वैयावृत्य तप है।
The service to a monk (vaiyavrttya) consists in providing him bed, residence, seat, proper cleaning of his implements etc. and then arranging for his food, medicine, a reading of scriptural text, a proper disposal of refuse with propers respect. (473)
अद्धाण तेण-सावद-राय-णदी-रोधणा-सिवे ओमे।
वेज्जावच्चं उत्तं, संगह-सारक्खणो-वेदं।।३६।।SSu
चोर व राजा पशु नदी, थके व रोगी लोग।
सेवा और रक्षा करे, वैयावृत्य तप योग॥२.२८.३६.४७४॥
जो मार्ग मे चलने से थक गये है, चोर, हिंसकपशु, राजा द्वारा व्यथित, नदी की रुकावट, मरी आदि रोग तथा दुर्भिक्ष से रक्षा व सार-सम्हाल करना वैयावृत्य है।
Offering protection to and taking care of a monk who becomes fatigued on his way, is threatened by a thief, a wild animal, a king or obstructed by river or gets afflicted by a contagious disease or famine, is service to a monk (vaiyavrttya). (474)