दिग्विरति व्रत के अतिचार Violation of Direction Restricting Vows
ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिस्मृत्यन्तराधानानि॥३०॥TS
ऊपर नीचे व तिरछा, क्षेत्र की सीमा पार।
परिमाण की विस्मृति भी, दिग्व्रत का अतिचार॥७.३०.२६६॥
दिग्विरति व्रत के पाँच अतिचार:
१। ऊपर की ओर अतिक्रम
२। नीचे की ओर अतिक्रम
३। तिरछी दिशा में अतिक्रम
४। क्षेत्र वृद्धि
५। स्मृत्यन्तराधान – भूल जाना
Violation of vow relating to direction:
- Exceeding upward limit
- Exceeding downward limit
- Exceeding horizontal limits
- Enlarging the area limits
- Forgetting limits set earlier
उड्ढमहे तिरियं पि य दिसासु परिमाण-करण-मिह पढमं।
भणियं गुणव्वयं खलु, सावगणम्मम्मि वीरेण।।१९।।SSu
दिशा सभी गमनागमन, पहली सीमा जान।
गुणव्रत ये है सर्व प्रथम श्रावक धर्म निशान ॥२.१३.१९.३१९॥
व्यापार आदि के क्षेत्र की सीमा करते हुए ऊपर, नीचे तथा तिर्यक् दिशाओं मे गमनागमन की सीमा बाँधना प्रथम दिग्व्रत नामक गुणव्रत है।
Lord Mahavira has said that the first Gunavrata in the religion of a householder is digvrata, accoring to which one should limit his activities (for the purpose of business and enjoyment of the senses, etc.) to certain regional boundaries in the upward, lower and oblique direction. (319)