धर्मद्रव्य Medium of Motion

 

– अजीव द्रव्य Non-living

– बहुप्रदेशी Multi space points

– अमूर्तिक Invisible

– नित्य Permanent

– अवस्थित Fixed

– निष्क्रिय Inaction

– संख्या एक One only

 

धम्मत्थिकाय-मरसं अवण्ण-गंधं असद्द-मप्फासं।
लोगोगाढं पुट्ठं, पिहुल-मसंखादिय-पदेसं।।८।।SSu

 

स्पर्श रूप रस गंध  नही, शब्द न धर्म स्वभाव।
असंख्यप्रदेशी लोक में, खण्ड न व्याप्त प्रभाव॥३.३५.८.६३१॥

 

धर्मास्तिकाय रस, रुप, स्पर्श, गन्ध और शब्दरहित है। समस्त लोकाकाश मे व्याप्त है, अखण्ड, विशाल और असंख्यातप्रदेशी है।

 

Dharmastikaya is devoid of the attributes like taste, colour, smell, sound and touch. It pervades universe, it is independent, huge and has innumerable pradesas, i.e., spacepoints. (631)

 

उदयं जह मच्छाणं गमणा-णुग्गहयरं हवदि लोए।
तह जीव-पुग्गलाणं धम्मं दव्वं वियाणेहि।।९।।SSu

 

गमन करे मछली जहाँ , होती जल की बात।
धर्म द्रव्य में तैरते, जीव पुद्गल दिन रात॥३.३५.९.६३२॥

 

जासे इस लोक मे जल मछलियों के गमन मे सहायक होता है वैसे ही धर्मद्रव्य जीवों तथा पुद्गल के गमन मे सहायक सा निमित्त होता है।

 

Just as water is helpful in the movement of fishes so is the Dharma in the movement of souls and matter. (632)