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व्यवहारनय Practical Point of View

 

 

जं संगहेण गहियं, भेयइ अत्थं असुद्ध सुद्धं वा।
सो ववहारो दुविहो, असुद्धसुद्धत्थभेयकरो।।१६।।SSu

 

संग्रह नय से अर्थ ले, शुद्ध अशुद्ध का भेद।
शुद्ध अशुद्ध के भेद से, नय व्यवहार दो वेद॥४.३९.१६.७०५॥

 

जो संग्रहनय के द्वारा गृहीत शुद्ध अथवा अशुद्ध अर्थ का भेद करता है वह व्यवहारनय है। यह भी दो प्रकार का है। अशुद्धार्थक भेदक और शुद्धार्थक भेदक।

 

The Distributive stand point (vyavaharnaya) is that which differentiates pure implications from impure ones according to General stand point. This is also of two kinds: 
1. That seperates impure-implications (Ashuddhartha-bhedak) and
2. That separate pure implications (Shuddhartha-bheda). (705)