संसार भावना Reflection of Mundaneness
धी संसारो जहियं, जुवाणओ परमरूवगव्वियओ।
मरिऊण जायइ, किमी तत्थेव कलेवरे नियए।।७।।SSu
अति सुन्दर गर्वित युवा, मृत्यु बाद विचार।
कीट बने उसी तन में जग को है धिक्कार॥२.३०.७.५११॥
इस संसार को धिक्कार है जहाँ अति सुन्दर युवक मृत्यु पश्चात उसी शरीर मे कीट के रुप मे उत्पन्न हो जाता है।
Fie upon the transmigratory cycle where a youth, highly proud of his own handsomeness, is born after death as a tiny insect in his own dead body. (511)
सो नत्थि इहोगासो, लोए वालग्गकोडिमित्तोऽवि।
जम्मणमरणाबाहा, अणेगसो जत्थ न य पत्ता।।८।।SSu
स्थान नहीं संसार में, नोक जितनी बाल।
जन्म मरण का कष्ट नहीं, जीव भोगता काल॥२.३०.८.५१२॥
इस संसार मे बाल की नोक जितना भी स्थान ऐसा नही है जहाँ इस जीव ने अनेक बार जन्म–मरण का कष्ट न भोगा हो।
There is no place in this world, even as tiny as tip of hair, where a soul has not suffered the pangs of births and deaths several times. (512)