द्रव्यार्थिक नय Substantive Point of View
– नैगमनय Non distinguish point of view
– संग्रहनय Generic view
– व्यवहारनय Practical view
–पर्यायार्थिक Modal Stand point
– ऋजुसूत्रनय Straight view
– शब्दनय Verbal point of view
– समभिरुढनय Conventional view point
– एवंभूतनय Actual view point
नैगमसंग्रहव्यवहारर्जुसूत्रशब्दसमभिरूढैवंभूता नया:॥१.३३॥TS
नैगम, व्यवहार, संग्रह, नय ऋजुसूत्र विचार।
शब्द व भूत समभिरूढ, मूल सात प्रकार॥१.३३॥
नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरुढ व एवंभूत ये सात दृष्टिकोण (नय) है।
The basic (original) nayas (stand-points) are seven: 1. Intentional (Naigam); 2. General/common (Samgraha); 3. Systematic(Vyavhar); 4. Straight (Rju-sutra); 5. Descriptive (Shabda); 6. Conventional (Samabhirudha); and 7. Specific (Evambhuta).
तित्थयर–वयण–संगह–विसेस–पत्थार–मूल–वागरणी।
दव्वट्ठिओ य पज्जवणओ, य सेसा वियप्पा सिं।।४।।Ssu
सामान्य- विशेष रहे तीर्थंकर दो वेद।
द्रव्यार्थिक व पर्यायर्थिक है, शेष है इनके भेद॥४.३९.४.६९३॥
तीर्थंकरों के वचन दो प्रकार के है। सामान्य और विशेष। दोनों प्रकार के वचनों की राशियों के नय भी दो है। द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक। शेष सब नय इन दोनों के ही अवान्तर भेद है।
The entire body of the teachings of Tirthankara taken in its entirely and taken in its particular details is to be explained with the help of two basic standpoints (nayas)-viz that substantial point of view (dravyarthikanaya) and that modificational point of view (paryayarthikanaya). The rest of them are the offshoots of these two. (693)
नेगम–संगह–ववहार–उज्जुसुए चेव होइ बोधव्वो।
सद्दे य समभिरूढे एवंभूए य मूलनया।।९।।Ssu
नैगम, व्यवहार, संग्रह, नय ऋजुसूत्र विचार।
शब्द व भूत समभिरूढ, मूल सात प्रकार॥४.३९.९.६९८॥
मूल नय सात प्रकार के है। नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ, एवंभूत।
(As sub divisions of substantial and Modal stand points) the basic (original) nayas (stand-points) are seven: 1. Figurative/not literal (Naigam); 2. General/common (Samgraha); 3. Distributive (Vyavhar); 4. Actual condition at a particular instant and for a long time (Rju-sutra); 5. Descriptive (Shabda); 6. Specific (Samabhirurha); and 7. Active (Evambhuta). (698)